रंगतेरस स्पेशल
है ये जो रंगों की वर्षा में रंगों की गुलाल तेरी
खुश्बू हे ये जो तेरी फूलो सी हे महकती
मुस्कुराहट भी जो तेरी यु ही खिलखिलाती हॆ-२
हॆ ये जो रंगों की वर्षा में रंगों की गुलाल तेरी
आया हे जो ये मौसम
पतझड़ भी सावन से बन जाते
प्रेम का जो रंग चढ़ाया तुने ऐसे जो मेरे मन पे
की मेरे ही ख़्वाबो में आकर मुझे ही तुम जगाती
ऐसे ना करो तुम ऐतबार अपने दीदार का ,
आया हे ये जो फागुन का महीना ऐसे ही हमको लुभाता
प्रेम के प्रेमियो को ऐसे ही मदहोष करता
कभी वो गाकर सुनाता तो कभी सुनकर के गाता
ऐसे ही मनभावन होकर के अपने ही मन को भाता
रहता हे मदहोश ; तुझे पाने की तम्न्ना में
फिर भी हे खामोश ये मन ,की तुझे देख कर के मुस्कुरादेता ,
फिर भी भोला हे ये मन तेरे ही रंगों में मिल जाता !!