संस्कृति और राजनीति
देश के रानीतिक षड्यंत्रों ने
सांस्कृतिक धरोहर का हरन कर रखा हॆ
वरन समाज को विषम कर रखा है
समाजवाद और धर्म निरपेक्षता ने
संस्कृति को आवाम कर रखा हॆ
जातिवाद के नाम पर सारी सभ्यता
और संस्कृति को दागी बना कर रखा हॆ
लोकत्रंत्र के नियमो ने संस्कृति को
प्रस्तर समान कर रखा हे
पाश्चत्य संस्कृति का अभिनव बिगुल अस्त कर रखा हॆ !!
वोटो के लालच में धान और शराब बाट रहे हे
सत्ता की कुर्सी पाने लिए संस्कृति के विपरीत जा रहे हॆ !!
यहाँ कलाकार की कला विलुप्त हो रही हे ,
संस्कृति भी दल-दल हो रही है ,
नेता ही नेता भूमंडल का हरन कर रहे है
भूमंडल ही नही पुरे परिवेश का समाविष्ट रूप से
दहन कर रहे हे !
पेसो की भूख में सब अंधे हो रहे है ,
संस्कृति की अहमियत को धुंधला कर रहे हे ;
संस्कृति के विपरीत जा रहे है ,
अपराधिकता को स्वयं जन्म दे रहे हे ,
गवाही में संस्कृति के जड़त्व को बदल रहे हे ,
नेता ही नेता से खिलवाड़ कर रहे है ,
आपस ही आपस में मतभेद कर रहे हे !!
टेबल के नीचे से ही लेन -देन कर के
नशीले -पदार्थो के सेवन पर खुद ही
लाइसेंस -एग्रीमेंट पास कर रहे है !!
भुत को भुलाकर भविष्य बनाने जा रहे है ,
वर्तमान को अवशेषों के समान रजा में मिला रहे है
पश्चिमी संस्कृति को अपना कर के
विदेशो मे प्रसिद्ध होने जा रहे हे ,
'बार' मे नाचकर के , बेटीयो को छोटे -छोटे कपड़ो में
देख कर मानो छाती फुला रहे हे !
अपनी मुल संस्कृति को कलंकित होता देख
राजनीति -राजनीति गा रहे है !!
जैसे अपने ही षड्यंत्रों से मानो लगी मुहर पर
कामयाबी का जश्न मना रहे !!Deepanshu Samdani
Poems Addicted
(deepanshusamdani.blogspot.com)