दोस्त- दिल की बात
शब्दों की शालीनता ,रुप ,और उनकी रचना
का प्रयोग ही समस्त है , इस दौर में !!
जब घायल करना ही है तो क्यों हथियार
आजमाते हो !!
जब शब्द ही इतने है , तो क्यों नही अपना
ये हथियार आजमाते हो !!
बेबस ,नादान ,शायद असमझ परिंदे है ,
बस उसी लाचारी का फायदा उठा रहे हो दोस्त,
ये तो हमने दोस्ती निभाने का वादा किया था ,
एक वाक्य कहा था मेने पहले कि ,
दोस्ती मुझसे भी कर के देखो मे भी
उस कश्ति की पतवार हुँ ,
जिसे कभी डुबने नही दुंगा !! .....
बस उसी रस्म को अदा करने का प्रयत्न करते रहते है !!
कभी-कभी शायद ये पतवार लहरों के बहाव से डगमगा
जाती है ,किन्तु साथ कभी नही छोडती ।
बहाव के पर्यन्त फिर से अपनी कश्ति को किनारा लगाने कि रस्म अदा करती है ।
शायद कुछ तो अपने ही बनाए दोस्त से नाराज हो जाते है ,
हम तो दिल भी दोस्ती में खो बैठे है ,
जो हर बार माफी मांग लिया करते है , और गलती का इलजाम भी अपने पर ही रख लेते हैं !
यही तो जिंदगी जीने का रब ने एक जरिया दिया है,
अगर फिर यह भी खो बैठे तो रस्म-ए-मस्ती का मजा कहा से आएगा ,
और जब दोस्त नाराज भी हो गए तो तुम्हें मनाने का पुरा हक भी तो है
क्योंकि दोस्त भी तो तुम मेरे ही हो !!
न जाने लोग मुल्यवान होने के लिए क्यों अपनी सारी जिंदगी हीरे ,जवारतोे मे निकाल देते हैं ;
सच कहूँ तो सारे जग मे सबसे मुल्यवान एक दोस्त ही तो होता है ,
जिसकी आप चाहकर भी कभी किमत अदा नही कर सकते हो !!
दोस्ती के लिए ही सही एक बार पहले ही माफी मांग लेता हुँ ;
असमझ , नादान परिंदा हुँ ,शायद कोई जाने अंजाने मे
कोई गलती कर बैठु !!
Deepanshu
Samdani
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