जिंदगी की भाग दौड़ में
रिश्तो की बागडोर भुल ही गया
अपने लिए ही अपनों की अहमियत भुल गया !
जैसे मै चुप भी रहा और बात कही भी
जैसे की में हुँ और नहीं भी !!
आजकल उँगलिया ही निभा रही हैं
मोबाइल पर रिश्तो को ,
जुबा को अब निभाने में बड़ी तकलीफ हो रही हें
सब टच में बीजी हे ,चाहे कोई टच में हो न हो
जरूरत तो हैं सभी को रिश्तों की और रिश्तो को निभाने की ,
किन्तु सभी अपने आप में बीजी हैं !
रिश्ते भी क्या अनोखे होते ;
कभी रास्ते पर चलते-चलते रिश्ते बन जाते
और कभी रिश्ते निभाते-निभाते रास्ते बदल जाते ,
रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के के दो पहलु हैं !
रिश्ते की क्या कीमत अदा करू
विपत्ति पर सबसे पहले अपने ही याद आते
तभी रिश्तो की अहमियत महसुस होती ,
रिश्ते निभाना भी अदाकारी हैं ;
फुलो को धागे से बाँधे रखना उदाहरण हैं ,
ये रिश्ते हें ,जो निभाने से निभ जाते हे ,
वरना आज के दौर में
बिना टच में रहकर भी टच से रह जाते है !
रिश्ते तो दर्पण होते ,निभाते तो सुरत दिखाते ,
ये तो अदाकारी हे रिश्ते निभाने की
वरना रिश्ते और रास्ते तो चलते - चलते बन जाते ,
रिश्तो की अहमियत तो राहो के मोड़ पर पता चलती
जहाँ मोड़ आ जाते वहाँ रिश्ते निभ जाते !
अपनों से रिश्ते बनाकर निभाने में तकलीफ बड़ी होती ,
किन्तु तकलीफ पर काम आने वाले रिश्ते भी अपने होते !
कहते हैं ;
रिश्तो की महक भी खुबसूरत होती
अपनों की महफ़िल में खुशबू भर देती ,
रिश्तो से ही तो सम्बन्धो की रौनक हैं
वरना तो अपनों के बिना गुड की मिठास भी फिकी सी हैं !
जिंदगी की इस भागदौड़ में
रिश्तो की बागडोर को बनाए रखना
और रिश्तों को रास्तो पर बनाए रखना
रिश्ते और रास्तो की अदाकारी है !!
Deepanshu Samdani
Poems Addicted
(deepanshusamdani.blogspot.com)
No comments:
Post a Comment