देश के हालात देख ये मन थक सा गया
ये देश के हालात देख
ये मन थक सा गया !
बेचारा बन बैठा है ,
कुछ करता भी तो कैसे ,
फिर से सम्भलता ,उठता
पर परिस्थिति ही विपरीत थी ,
वो भी कुछ लहर सी बन उठी
उसे भी शांत करता पर !! कैसे ?
ये मन थक सा गया !
ये मन थक सा गया !!
बेतरतीब उलझने थी,
लाचारी सी छाई ,
सोच रहा था परिस्थिति सम्भालू या खुद
को,
समझ ही नहीं आता की देश पर
मर मिटने वाले देश को इतना कुछ
क्यों दे गए;
की हम उसकी अहमियत भुल गए !
क्षणिक क्षण भी न सोचते की ,
इस देश की संस्कृति हो गयी है दागी और
सारी आवाम हो रही है बागी !!
सोचता भी तोह कैसे ,
ये मन थक सा गया !!
बुलबुला भी पानी में उठा और लाचारी
सी देख शांत सा हो गया ,
ऐसा ही ये थाना सा मन थक सा गया ,
करता भी तोह क्या करता ;
ये देश के हालात देख
ये मन थक सा गया ;
ये मन थक सा गया !!
Deepanshu Samdani
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