परछाई
मैं अनुज भी हूँ ,मैं अग्रज भी हूँ ,
हर लम्हा हर पल कदम कदम पर साथ हूँ,
पहचान ले मुझे तेरी छवि भी मैं ,तेरी हमसफ़र भी मैं,
तेरी रूह भी मैं , तेरा तन भी मैं,
तेरा प्रतिबिम्ब भी मैं , तेरी काल्पनिक भी मैं हूँ
तेरे अनुरूप चलने वाली ,तेरे रूप को बया करने वाली
अनन्त रुपी छवि हूँ !!
तेरी अमुच्चय घनिष्ठता का प्रमाण भी मैं ,
तेरी अनूज भी मैं, तेरी अग्रज भी मैं !!
तेरी कल्पना भी मैं ,तेरा रंगमंच भी मैं ,
तेरी हर गुजारिश को पूरी करने मे हमसफ़र रहने
वाली प्रतिबिम्ब मैं , तेरी परछाई भी मैं !!
समझौते की भीड़-भाड़ मे ,मैं खुद को खो बैठा
उनका तो कुछ नहीं हुआ पर मैं स्वयं प्रतिबिंब खो बैठा
तभी अग्रज को देखा तो समज आया ,
खुद के मुकाबिल खुद रहो अपनी छवि अनमोल है ,
अपने छवि को अपने अनुरूप बनाए रखना ,
उसकी बात ही और है !!
तेरी दर्पण भी मैं , तेरी छाया भी मैं ,
तेरी हक़िकत भी मैं , तेरी घनिष्ठता भी मैं ,
तेरे मुक्कल भी मैं , तेरे मुकाबिल भी मैं ,
तेरे अनुकूल भी मैं, तेरे अनुरूप भी मैं ,
तेरी हमराही भी मैं ,तेरी हमसफर भी मैं ,
तेरे प्रतिबिम्ब को हमेशा आगे रखकर ,
तेरी सत्यता प्रमाणित करने वाली
तेरी अविरल छवि को अंकित करनी वाली
तेरी प्रतिबिम्ब भी मैं!!
तेरी परछाई भी मैं !!
Deepanshu Samdani
Poems Addicted
No comments:
Post a Comment